स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व राष्ट्रीय अस्मिता परकीयों के अधीन थी । भारतीय संस्कृति का मूलोच्छेद किया जा चुका था। सम्पूर्ण राष्ट्र की तरूणाई का लक्ष्य परकीय व्यवस्था से मुक्ति हेतु, अनवरत आत्माहुति करके, भारतीय तन्त्र की पुनर्स्थापना हेतु 1947 में स्वतंत्रता की प्राप्ति हुई थी। हुतात्माओं के बलिदान का बिना विचार किये, राष्ट्र के तत्कालीन तथाकथित सूत्रधारी राजनायिकों ने मैकाले की शिक्षा पद्धति को अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र पर थोप दिया। भारत माता की आत्मा स्वतंत्र होते हूये भी परोक्ष रूप से पुनः दासता की बेड़ी मे जकड़ दी गयी। राष्ट्र की भूख की अनुभूति हुतात्माओं की आत्मा की शान्ति हेतु, भारत माता के सपूतों ने उन्नत स्वाभिमानी राष्ट्र निर्माण की भावना से ओत-प्रोत होकर पूर्ण आत्मविश्वास से 1952 में सरस्वती शिशु मन्दिरों की शिक्षा की योजना आरम्भ किया। जिससे सम्पूर्ण राष्ट्र ही नही, अखिल विश्व भी इस शिक्षा पद्धति एवं राष्ट्रीय भावना के प्रति नतमस्तक है। इसी श्रृंखला में विद्या मन्दिर शिक्षण संस्थान, आर्यनगर ( उत्तरी ), गोरखपुर राष्ट्र निमार्ण के इस वृहद् अभियान में महायोगदान हेतु 13 जुलाई, 1964 से समर्पण के साथ लगा हुआ किसी व्यक्ति, समाज, राष्ट्र का ध्येय एवं लक्ष्य यदि स्पष्ट रहता हैं, कार्य निस्पृह भाव से करने की भावना होती है,तो सफलता स्वतः पुरूषार्थी के चरण वन्दन हेतु चली आती है। ऐसा ही कुछ विद्या मन्दिर शिक्षण संस्थान आर्यनगर ( उत्तरी ), गोरखपुर के सम्बन्ध में चरितार्थ होता है। संस्थान आपके स्नेह एवं सहयोग से सहर्ष स्वाभिमानपूर्वक सम्पूर्ण समाज की चुनौती स्वीकार कर रहा है। विद्या मन्दिर शिक्षण संस्थान आर्यनगर ( उत्तरी ), गोरखपुर ने जो कुछ भी समाज से लिया उसको द्विगणित करके पुनः समाज को समर्पित करता जा रहा है। आज यहा भोगवादी अर्थ प्रधान शासन व्यवथा मानव जीवन के लिये सब कुछ मान रही है। वहीं हम महान राष्ट्र नायक चाणक्य के उद्घोष ‘‘उतिष्ठ भारत’’ का सदैव-सदैव स्मरण कर शिक्षा के द्वारा सच्चरित्र एवं संयमी मनष्यों के निर्माण में अपना सौभाग्य अनुभव कर रहे हैं।
अब तक हम अपने साधनों के अभाव के कारण समाज के सर्वांगीण विकास को व्यवस्था देने में असमर्थता का अनुभव कर रहे थे। समाज के सर्वागीण विकास की पीड़ा हमे सदैव सताती रहती है। आपके स्नेह सहयोग नंे हमें इस योग बना दिया कि हम जीवन के उभय पक्ष का विकास राष्ट्र निमार्ण हेतू एक स्थान पर साथ - साथ आरम्भ कर दें, हमारा अभिप्राय आप अनुभव कर रहे होंगे। जीवन का उभय पक्ष पुरूष एवं नारी के समुन्नति से ही विकसित को सकता है। वर्तमान में बालिकाओं के लिये परास्नातक तक विज्ञान वर्ग एवं स्नातक वाणिज्य वर्ग की कक्षाएँ नवीन साज-सज्जा युक्त कक्षाओं एवं प्रयोशालाओं में स्नातकोत्तर महाविद्यालय अनूठा चल रहा है। पिछले 20 वर्षों से लगातार 100 प्रतिशत परीक्षा परिणाम हो रहा है।
स्थानाभाव के कारण बालकों की शिक्षा व्यवस्था कक्षा अष्टम् तक ही थी। प्रत्येक वर्ष अष्टम् उत्तीर्ण भैया अन्य विद्यालयों में प्रवेश हेतु काफी परेशान होते थे। अपने अभिभावकों की पीड़ा एवं परेशानी को देख कर विद्यालय के उत्तरी भाम में बालकों की यू.पी. बोर्ड से इण्टरमीडिएट की शिक्षा हेतु विशाल भवन का निर्माण कराया गया। इस विद्यालय में मूल रूप से विज्ञान एवं वाणिज्य वर्ग की शिक्षा प्रदान की जाती है। कम्प्यूटर शिक्षा की भी व्यवस्था है। इस विद्यालय का मुख्य द्वार रेलवे लाइन की तरफ से गुजरने वाली सोनौली रोड पर है। आशा एवं विश्वास है कि पूर्व की भाँति हमें आप सभी अभिभावक बन्धुओं का सहयोग निरन्तर प्राप्त होता रहेगा।
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स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व राष्ट्रीय अस्मिता परकीयों के अधीन थी । भारतीय संस्कृति का मूलोच्छेद किया जा चुका था। सम्पूर्ण राष्ट्र की तरूणाई का लक्ष्य परकीय व्यवस्था से मुक्ति हेतु, अनवरत आत्माहुति करके, भारतीय तन्त्र की पुनर्स्थापना हेतु 1947 में स्वतंत्रता की प्राप्ति हुई थी। हुतात्माओं के बलिदान का बिना विचार किये, राष्ट्र के तत्कालीन तथाकथित सूत्रधारी राजनायिकों ने मैकाले की शिक्षा पद्धति को अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र पर थोप दिया। भारत माता की आत्मा स्वतंत्र होते हूये भी परोक्ष रूप से पुनः दासता की बेड़ी मे जकड़ दी गयी। राष्ट्र की भूख की अनुभूति हुतात्माओं की आत्मा की शान्ति हेतु, भारत माता के सपूतों ने उन्नत स्वाभिमानी राष्ट्र निर्माण की भावना से ओत-प्रोत होकर पूर्ण आत्मविश्वास से 1952 में सरस्वती शिशु मन्दिरों की शिक्षा की योजना आरम्भ किया। जिससे सम्पूर्ण राष्ट्र ही नही, अखिल विश्व भी इस शिक्षा पद्धति एवं राष्ट्रीय भावना के प्रति नतमस्तक है। इसी श्रृंखला में विद्या मन्दिर शिक्षण संस्थान, आर्यनगर ( उत्तरी ), गोरखपुर राष्ट्र निमार्ण के इस वृहद् अभियान में महायोगदान हेतु 13 जुलाई, 1964 से समर्पण के साथ लगा हुआ किसी व्यक्ति, समाज, राष्ट्र का ध्येय एवं लक्ष्य यदि स्पष्ट रहता हैं, कार्य निस्पृह भाव से करने की भावना होती है,तो सफलता स्वतः पुरूषार्थी के चरण वन्दन हेतु चली आती है। ऐसा ही कुछ विद्या मन्दिर शिक्षण संस्थान आर्यनगर ( उत्तरी ), गोरखपुर के सम्बन्ध में चरितार्थ होता है। संस्थान आपके स्नेह एवं सहयोग से सहर्ष स्वाभिमानपूर्वक सम्पूर्ण समाज की चुनौती स्वीकार कर रहा है। विद्या मन्दिर शिक्षण संस्थान आर्यनगर ( उत्तरी ), गोरखपुर ने जो कुछ भी समाज से लिया उसको द्विगणित करके पुनः समाज को समर्पित करता जा रहा है। आज यहा भोगवादी अर्थ प्रधान शासन व्यवथा मानव जीवन के लिये सब कुछ मान रही है। वहीं हम महान राष्ट्र नायक चाणक्य के उद्घोष ‘‘उतिष्ठ भारत’’ का सदैव-सदैव स्मरण कर शिक्षा के द्वारा सच्चरित्र एवं संयमी मनष्यों के निर्माण में अपना सौभाग्य अनुभव कर रहे हैं।
अब तक हम अपने साधनों के अभाव के कारण समाज के सर्वांगीण विकास को व्यवस्था देने में असमर्थता का अनुभव कर रहे थे। समाज के सर्वागीण विकास की पीड़ा हमे सदैव सताती रहती है। आपके स्नेह सहयोग नंे हमें इस योग बना दिया कि हम जीवन के उभय पक्ष का विकास राष्ट्र निमार्ण हेतू एक स्थान पर साथ - साथ आरम्भ कर दें, हमारा अभिप्राय आप अनुभव कर रहे होंगे। जीवन का उभय पक्ष पुरूष एवं नारी के समुन्नति से ही विकसित को सकता है। वर्तमान में बालिकाओं के लिये परास्नातक तक विज्ञान वर्ग एवं स्नातक वाणिज्य वर्ग की कक्षाएँ नवीन साज-सज्जा युक्त कक्षाओं एवं प्रयोशालाओं में स्नातकोत्तर महाविद्यालय अनूठा चल रहा है। पिछले 20 वर्षों से लगातार 100 प्रतिशत परीक्षा परिणाम हो रहा है।
स्थानाभाव के कारण बालकों की शिक्षा व्यवस्था कक्षा अष्टम् तक ही थी। प्रत्येक वर्ष अष्टम् उत्तीर्ण भैया अन्य विद्यालयों में प्रवेश हेतु काफी परेशान होते थे। अपने अभिभावकों की पीड़ा एवं परेशानी को देख कर विद्यालय के उत्तरी भाम में बालकों की यू.पी. बोर्ड से इण्टरमीडिएट की शिक्षा हेतु विशाल भवन का निर्माण कराया गया। इस विद्यालय में मूल रूप से विज्ञान एवं वाणिज्य वर्ग की शिक्षा प्रदान की जाती है। कम्प्यूटर शिक्षा की भी व्यवस्था है। इस विद्यालय का मुख्य द्वार रेलवे लाइन की तरफ से गुजरने वाली सोनौली रोड पर है। आशा एवं विश्वास है कि पूर्व की भाँति हमें आप सभी अभिभावक बन्धुओं का सहयोग निरन्तर प्राप्त होता रहेगा।
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