महाविद्यालय की स्थापना एवं उसके सम्पूर्ण विकास की परिकल्पना मलकुती कुआतों (देव शक्तियों) के प्रेरणा के फलस्वरूप ही संभव होता है । भ्रमवश अज्ञानी मानव अल्लाह (परमात्मा) द्वारा प्रदत्त सफलता रूपी बख्शीश (प्रसाद) को अपनी उप्लब्धियों मे जोड़कर एवं अपने को परिपूर्ण मानकर अपने आगे की उपलब्धियों को विराम देने लगता है और यही से मानव के पतन का मार्ग प्रशस्त होने लगता है । इस महाविद्यालय की स्थापना से पूर्व बड़े बुजुर्गो से प्राप्त शिक्षा और अहंकार से कोषों दुर रहकर महात्मा बुद्ध की पावन धरती पर स्थित करौंदा मसीना मे आज़ाद महाविद्यालय की स्थापना हुई ।
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महाविद्यालय की स्थापना एवं उसके सम्पूर्ण विकास की परिकल्पना मलकुती कुआतों (देव शक्तियों) के प्रेरणा के फलस्वरूप ही संभव होता है । भ्रमवश अज्ञानी मानव अल्लाह (परमात्मा) द्वारा प्रदत्त सफलता रूपी बख्शीश (प्रसाद) को अपनी उप्लब्धियों मे जोड़कर एवं अपने को परिपूर्ण मानकर अपने आगे की उपलब्धियों को विराम देने लगता है और यही से मानव के पतन का मार्ग प्रशस्त होने लगता है । इस महाविद्यालय की स्थापना से पूर्व बड़े बुजुर्गो से प्राप्त शिक्षा और अहंकार से कोषों दुर रहकर महात्मा बुद्ध की पावन धरती पर स्थित करौंदा मसीना मे आज़ाद महाविद्यालय की स्थापना हुई ।
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